सिखों के छठे गुरु- गुरु हरगोबिंद सिंह जी, जिन्होंने पहली सिख सेना बनाई। दिन था- 21 अषाढ़, संवत 1652 यानी 19 जून, 1595 का, जब पंजाब के पसिद्ध शहर- अमृतसर के वडाली गांव में, इनका जन्म हुआ था। वो पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। पिता की शहादत के बाद, 25 मई, 1606 को, गुरु हरगोबिंद सिंह जी गद्दी पर बैठे। उस वक्त उनकी उम्र, महज 11 साल थी। लगभग 38 साल तक, वो इस पद पर बने रहे। वो, अपने साथ हमेशा मीरी और पीरी नाम की दो तलवारें रखते थे। एक तलवार धर्म की और दूसरी, राजसत्ता की प्रतीक थी। साल, 1609 में, उन्होंने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब के ठीक सामने- श्री अकाल तख्त साहिब बनवाया। इसके जरिए, वो ये संदेश देना चाहते थे कि- संसार में वास्तविक राज्य परमात्मा का है। अमृतसर के पास लोहगढ़ नाम का किला, भी उन्हीं का बनवाया हुआ है।
एक बार, मुगल बादशाह जहाँगीर ने उन्हें, ग्वालियर किले में बंदी बना लिया। उस समय जेल में, और भी राजा कैद थे। करीब 12 साल तक गुरु हरगोबिंद सिंह जी वहां रहे। लेकिन जब, जहाँगीर को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने, उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। लेकिन, गुरु हरगोबिंद सिंह जी अकेले जेल से नहीं निकले, बल्कि अपने साथ, उन 52 राजाओं को भी आजाद करवाया। इसलिए आज भी, उन्हें प्यार से बंदीछोड़ यानी ''कैदियों का मुक्तिदाता'' मानते हैं। जिस जगह उन्हें कैद किया गया था, आज वहां पर ‘दाता बंदी छोड़’ गुरुद्वारा है। कैद से रिहा होने के बाद, उन्होंने दोबारा, मुगलों से बगावत की। मुगलों से उनके 4 युद्ध हुए, और उन्होंने चारों में शाहजहां को हरा दिया। अपने जीवन के अंतिम दिनों में, उन्होंने, अपने पोते, गुरु हर राय सिंह जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया। और अंत में पंजाब के,
कीरतपुर साहिब में 28 फरवरी, 1644 में ज्योति-जोत समाए। गुरुद्वारा पातालपुरी, गुरु जी की याद में आज भी हजारों व्यक्तियों को शान्ति का संदेश देता है। श्रीनगर में उन्होंने काफी समय बिताया, उसी की याद में वहां भी गुरुद्वारा श्री गुरु हरगोबिंद सिंह साहिब बनाया गया है। आज, द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व, की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।